शिक्षा में उम्र के बन्धन को तोड़ा 80 वर्षीय महिला शशिकला रावल ने राज्यपाल के हाथों पीएचडी की डिग्री प्राप्त की

उज्जैन | शिक्षा, ज्ञान की न तो कोई सीमा होती है न कोई उम्र। व्यक्ति जीवनभर सीखता रहे तो भी कम है। उस उम्र में जब लोग घर बैठकर सेवा निवृत्ति का समय काट रहे होते हैं, तब उज्जैन की एक महिला ने अपना ज्ञान बढ़ाते हुए पहले ज्योतिष में एमए किया। इसके बाद निरन्तर आठ साल तक अध्ययनरत रहकर ज्योतिष विषय में महर्षि पाणिनी विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ.मिथिला प्रसाद त्रिपाठी के मार्गदर्शन में ‘वृहत संहिता के दर्पण में सामाजिक जीवन के बिंब’ पर डॉक्टर ऑफ फिलासॉफी की डिग्री हासिल की। 80 वर्षीय महिला को डिग्री प्रदान करते वक्त राज्यपाल श्रीमती आनन्दीबेन पटेल को सुखद आश्चर्य हुआ और उन्होंने महिला की हौसले की प्रशंसा की।
उज्जैन निवासी श्रीमती शशिकला रावल राज्य सरकार के शिक्षा विभाग से व्याख्याता के रूप में सेवा निवृत्त हुई। इसके बाद उन्होंने वर्ष 2009 से 2011 के बीच में ज्योतिष विज्ञान से एमए किया। वे यहीं पर नहीं रूकीं। लगातार उन्होंने अध्ययन करके संस्कृत विषय में वराहमिहिर के ज्योतिष ग्रंथ ‘वृहत संहिता’ पर पीएचडी करने का विचार किया। उन्होंने सफलतापूर्वक इस कार्य को करते हुए 2019 में पीएचडी की डिग्री हासिल की।
यह पूछने पर कि जब इस उम्र में लोग घर पर आराम करते हैं, उन्होंने पढ़ाई लिखाई का रास्ता क्यों चुना। डॉ.शशिकला रावल बताती हैं कि उनकी सदैव ज्योतिष विज्ञान में रूचि रही है और इस कारण से विक्रम विश्वविद्यालय द्वारा प्रारम्भ किये गये ज्योतिर्विज्ञान विषय में एमए में उन्होंने प्रवेश लिया। इसके बाद और पढ़ने की इच्छा हुई तो वराहमिहिर की वृहत संहिता पढ़ी और इसी पर पीएचडी करने का विचार किया। उन्होंने कहा कि ज्योतिष पढ़ने से उनके चिन्तन को अलग दिशा मिली है। वे बताती हैं कि ज्योतिष का जीवन में कुछ इस तरह का महत्व है कि जैसे नक्शे की सहायता से हम कहीं मंजिल पर पहुंचते हैं। ज्योतिष के माध्यम से जीवन के आने वाले संकेतों को पढ़कर हम चुनौतियों का सामना कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि जीवन में किस-किस तरह के संकट आ सकते हैं और कहां तूफानों से गुजरना होगा, इसका पहले से आंकलन कर लिया जाये तो जीवन बिताने में आसानी होती है। उनका मानना है कि अंधविश्वास करने की बजाय ज्योतिषिय गणना के माध्यम से मिलने वाले संकेतों को समझना चाहिये। डॉ.शशिकला रावल कहती हैं कि वे फलादेश और लोकप्रिय कार्यों के स्थान पर जीवन में मूलभूत बदलावों की तरफ अधिक ध्यान देती हैं और अपने ज्ञान का उपयोग आलेख या संभाषण के माध्यम से जनहित में करना चाहेंगी।