रतलाम। मानव मन की एक बहुत बड़ी कमी है की उसका ध्यान खुद में नही हमेशा दूसरों में रहता है, चाहे धार्मिक क्षैत्र हो सामाजिक, व्यवसायिक क्षैत्र हो । जबकि भगवान ने कहा है की स्वंय को देखो । लेकिन हम तो ऐसे है की जब ध्यान करने बैठते है तब भी हमारा ध्यान भटकता रहा है ।
किसी दूसरे के द्वारा हमारे कर्म बंधते नही और कोई दूसरा हमारे कर्म काट सकता है । भगवान महावीर को भी अपने कर्मो को खुद कष्ट सहकर काटना पड़ा । उन्होंने अपने पूर्व भव में राजा के रूप में संगीतकार के कान में गरम शीशा डाला था तो ग्वाले ने उनके कान में खीले ठोके।
जैन दिवाकर गुरुदेव ने एक बहुत ही सुंदर भजन बनाया है की साता की जो जी शिव सुख दिजो जी। मतलब शिव सुख से पहले हमें साता यानि शांति की ज्यादा आवश्यकता है । साता होगी तो प्रभु मिलन भी हो जाएगा। लेकिन भौतिक साता नही हमें मन की साता मांगना है । हमें साता तभी मिल सकती है जब हम दूसरों को साता पँहुचाएँगे ।
अगर हमें भगवान से कुछ माँगना है तो 4 चीजें माँगना चाहिए। पहला ये की वॉश हो सके हमे ऐसा ब्रेन दे दो । मतलब दिमाग के भीतर जो कचरा भरा है वो वाश करने की शक्ति माँगना चाहिए। ब्रेन को वाश करने के लिये भगवान ने हमे स्वंय की आलोचना और प्रतिक्रमण का पाठ बताया है। हमारे भीतर पूर्वाग्रहों का धारणाओं का कचरा भरा है । हमे उसे वॉश करने की शक्ति परमात्मा से माँगना है।
दूसरा हमें भगवान से माँगना है की हमे वेट करने की शक्ति दे मतलब इंतजार करने की शक्ति देवे । कहते है की शुभष्य शीघ्रम लेकिन हम सांसारिक कार्यों में अनैतिक कार्यों में शीघ्रता करते है। घूमने फिरने का प्लान हो, पिक्चर जाने का प्लान हो तो हम तुरंत बना लेते है लेकिन जब कोई दान देने की बात आती है परमार्थ करने की बात आती है तब हम कहते है की सोच कर बताता हूँ परिवार से पिताजी से बच्चों से पूछ कर बताऊंगा।
हमें भगवान से वेट कर सकू ऐसा माइंड दो ये शक्ति माँगना चाहिये जब कोई हमें भला बुरा कहे गाली देवे तब हमारे भीतर वेट करने की शक्ति होगी तो हम तुरंत जवाब देने से झगड़ा करने से बच जाएंगे। कोई भी गलत काम करने के पहले अगर हम थोड़ा वेट कर सके इंतजार कर सके तो हम कई पापों से बच सकते है। क्योंकि क्रोध हमारा स्वभाव नही है विभाव है ये कुछ ही समय रहता है । क्रोध आए, मान आए, लोभ आए, कषाय आए तब वेट करो तो हम कई पापों से बच सकते है।
जो अपना खास होता है क्या हम उसको इंतज़ार करवाते है नही करवाते है, वैसे ही क्रोध, मान, माया, लोभ हमें आता है तो उसे हम इंतज़ार नही करवाते है मतलब इन सबको हमने अपना दोस्त बनाकर रखा है जबकि प्रभु ने इन्हें इंसान का दुश्मन बताया है।
तीसरा हमें ऐसी दिल देना की हम विश कर सके । हम विश तो करते है लेकिन सच्चे मन से विश नही करते है अपने परिवार में दोस्तों में और व्यवसाय में कोई सफलता प्राप्त करता है तो हम औपचारिक रूप से विश तो करते है लेकिन सहमारे भीतर से शुभकामनाएं नही निकलती है।
कोई दान देता है तो हम उसके दान में भी कमी निकालते है की बहुत धन दौलत है दान कर दिया तो कौन सी बड़ी बात है। प्रामाणिक व्यवसाय नही करते है पाप की कमाई करते है फिर दान करते है । नाम की चाहत में दान करते है इस प्रकार की कई बातें करते है लेकिन दान की अनुमोदना हम नही कर सकते है। प्रामाणिक कमाई करना आसान नही है । हम किसी का भला कर सके, अनुमोदना कर सके, सच्चे मन से किसी को विश कर सके ऐसा दिल हमें दो ऐसी शक्ति हमें प्रभु से माँगना चाहिए।
चौथी बात माँगना है की वॉक कर सकू ऐसे पैर दो। वॉक कर सकू मतलब धर्म स्थान पर जा सकू साधु संतों के दर्शन करने जा सकू मंदिर जा सकू, तीर्थ यात्रा कर सकू ऐसी पैर में शक्ति दो। नही तो कभी कभी ऐसी भी विडंबना होती है की व्यक्ति बिस्तर में बेबस पड़ा रहता है आयुष्य कर्म के कारण न मरने में होता है न जीने में एसलिये प्रभु से हमें ऐसी शक्ति माँगना चाहिये की में वॉक कर सकूं ।
यह ओजस्वी प्रवचन पूज्या श्री विचक्षण श्री जी ने फरमाए।
पूज्या श्री रत्नज्योति जी मसा ने फरमाया की आपके लिए संसार की प्रत्येक क्रिया प्रत्येक प्राणी चुने के समान है । जैसे ज्यादा चुना खाने से शरीर के भीतर आंते जल जाती है व्यक्ति बीमार हो सकता है मर सकता है वैसे ही सांसारिक कार्य में पाप का बन्ध होता है । चुने के प्रभाव को कम करने के लिये नष्ट करने के लिए घी पीना चाहिए । वैसे ही संसार के पापों को काटने के लिये त्याग, तपस्या, जप, तप, आदि की घी की कटोरी का सेवन करना चाहिये जैसे एक कटोरी घी चुने के दुष्प्रभाव को खत्म कर सकती है वैसे ही रोज एक समता वाली सामायिक हमारे पापों के प्रभाव को कम कर सकती है ।
श्रीसंघ प्रतिनिधि ने बताया की
नीमचौक स्थानक पर श्रमण संघीय आचार्य सम्राट डॉक्टर शिवमुनी जी म.सा. की आज्ञानुवर्तीनी एंव उपाध्याय श्री पुष्करमुनिजी म.सा. आचार्य श्री देवेंद्र मुनि जी म.सा. की सुशिष्या महासती श्री प्रियदर्शना जी म.सा., साध्वी श्री किरणप्रभा जी म.सा., श्री रतनज्योतिजी म.सा., श्री विचक्षणश्रीजी म.सा. श्री अर्पिताश्रीजी म.सा., श्री वंदिताश्री जी म.सा., श्री मोक्षिताश्रीजी म.सा. आदि ठाना 07 विराजमान है । आगामी कुछ दिनों तक प्रतिदिन सुबह 9 से 10 प्रवचन रखे गए है।