उज्जैन | उप संचालक किसान कल्याण तथा कृषि विकास श्री सीएल केवड़ा द्वारा जानकारी दी गई कि खरीफ मौसम की फसल बुवाई का समय नजदीक आ रहा है। चूंकि जिले में खरीफ मौसम में सोयाबीन फसल की बुवाई मुख्य रूप से की जाती है। अत: भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान इन्दौर की अनुशंसा के आधार पर विभाग द्वारा किसानों को सलाह दी जाती है कि उत्पादन में स्थिरता की दृष्टि से दो से तीन वर्ष में एक बार खेत की गहरी जुताई करना लाभप्रद होता है। अत: जिन किसान भाईयों ने खेत की गहरी जुताई नहीं की हो, कृपया अवश्य करें। इसके बाद बक्खर, कल्टीवेटर एवं पाटा चलाकर खेत को तैयार करें। उपलब्धता अनुसार अपने खेत में 10 मीटर के अन्तराल पर सब-सॉइलर चलायें, जिससे मिट्टी की कठोर परत को तोड़ने से जल अवशोषण/नमी का संचार अधिक समय तक बना रहे।
किसान खेत की अन्तिम बखरनी से पूर्व अनुशंसित गोबर की खाद (10 टन प्रति हेक्टेयर) या मुर्गी की खाद (2.5 टन प्रति हेक्टेयर) की दर से डालकर खेत में फैला दें।
ज्ञात हो कि वर्षा के आगमन के पश्चात सोयाबीन की बोवनी हेतु मध्य जून से जुलाई के प्रथम सप्ताह का समय उपयुक्त है। नियमित मानसून के पश्चात लगभग चार इंच वर्षा होने के बाद ही बुवाई करना उचित होता है। मानसून पूर्व वर्षा के आधार पर बोवनी करने से सूखे का लम्बा अन्तराल रहने पर फसल को नुकसान हो सकता है।
बीज व्यवस्था
किसान स्वयं के पास उपलब्ध बीज का अंकुरण-परीक्षण कर लें और कम से कम 70 प्रतिशत अंकुरण क्षमता वाला बीज ही बुवाई के लिये रखें, यदि किसान बाहर कहीं और से उन्नत बीज लाते हैं तो विश्वसनीय/विश्वासपात्र संस्था अथवा संस्थान से ही बीज खरीदें तथा पक्का बिल अवश्य लें। इसके अलावा स्वयं भी घर पर अंकुरण परीक्षण करें। किसान अपनी जोत के अनुसार कम से कम दो से तीन किस्मों की बुवाई करें। जिले में अनुशंसित किस्में जेएस 95-60, जेएस 93-05 और नवीन किस्में जेएस 20-34, जेएस 20-29 और आरवीएस 2001-04 प्रमुख है।
बीजोपचार
किसानों को सलाह दी जाती है कि वे बीज की बुवाई से पूर्व बीजोपचार जरूर करें। बीजोपचार हमेशा फंजीसाइट, इंसेक्टिसाइट और राइजोबियम एफआईआर क्रम में ही करना चाहिये। इस हेतु जैविक फफूंदनाशक ट्राइकोडर्मा विरडी 5 ग्राम प्रतिकिलोग्राम बीज अथवा फफूंदनाशक थाइरम+कार्बोक्सिन (3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज) या थाइरम+कार्बेंडाजिम (3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज) अथवा पेनफ्लूफेन+ट्रायक्लोक्सिस्ट्रोविन (1 मिली प्रति किलोग्राम बीज) के मान से उपचारित करें।
पिछले साल जहां पर पीला मोजेक की समस्या रही है, वहां इस बीमारी की रोकथाम हेतु अनुशंसित कीटनाशक थायोमिथॉक्सम 30 एफएस (10 मिली प्रति किलोग्राम बीज) या इमिडाक्लोप्रिड 48 एफएस (1.2 मिली प्रति किलोग्राम बीज) से अवश्य उपचारित करें। इसके बाद जैव उर्वरक (राइजोबियम एवं पीएसवी कल्चर) 5 से 10 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज के मान से अनिवार्यत: उपयोग करें।
बीज दर
किसानों को सलाह दी जाती है कि अनुशंसित बीज 75-80 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से उन्नत प्रजातियों की बुवाई करें। एक हेक्टेयर क्षेत्र में लगभग 4.50 लाख पौध संख्या होनी चाहिये। कतार से कतार की दूरी कम से कम 14 से 18 इंच के आसपास रखें। गत वर्ष अधिक वर्षा के कारण सोयाबीन की फसल प्रभावित हुई थी। इस स्थिति को ध्यान में रखते हुए यदि संभव हो तो रेज्ड बेड पद्धति से फसल की बुवाई करें। इस विधि से बुवाई करने से कम वर्षा एवं अधिक वर्षा दोनों ही स्थिति में फसल को नुकसान नहीं होता है।
खाद्य एवं उर्वरक
किसान नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश एवं सल्फर की मात्रा क्रमश: 20:60:30:20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के मान से उपयोग करें। इस हेतु एनपीके (12:32:16) 200 किलोग्राम+25 किलोग्राम जिंक सल्फेद प्रति हेक्टेयर और डीएपी 111 किलोग्राम एवं म्यूरेट ऑफ पोटाश 50 किलोग्राम+25 किलोग्राम जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर का उपयोग कर सकते हैं।
फसल बुवाई यदि डबल पेटी सीड कम फर्टिलाइजर सीडड्रिल से करते हैं तो बहुत अच्छा है, जिससे उर्वरक एवं बीज अलग-अलग रहता है और उर्वरक बीज के नीचे गिरता है तो लगभग 80 प्रतिशत उपयोग हो जाता है। यदि डबल पेटी वाली मशीन न हो तो अन्तिम जुताई के समय अनुशंसित उर्वरक का उपयोग करें। किसान अधिक जानकारी के लिये अपने-अपने क्षेत्र के वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी कार्यालय या सम्बन्धित क्षेत्रीय ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी से सम्पर्क कर सकते हैं।