इंसान 3 प्रकार के होते है – पहला असली, दूसरा नकली और तीसरा दखली- पुज्याश्री रत्नज्योति जी मसा

प्रकृति, आसक्ति, जाग्रति और निवृत्ति के बारे में चिंतन करो

रतलाम । असली इंसान कीमती होता है, बहुमूल्य होता है, जैसे असली सोना, असली हीरा, असली चाँदी असली हीरा अगर कीचड़ मे भी पड़ा है तो भी उसको निकाल कर साफ कर लेंगे तो जौहरी उसकी अच्छी कीमत देता है, नकली गहने भले ही चमकते ज्यादा है लेकिन जब बाजार मे बेचने जाते है तो भंगार के भाव बिकते है, वैसे ही नकली इंसान चमकता ज्यादा है लेकिन प्रामाणिक नहीं होता है, प्रामाणिक व्यक्ति को ही मान सम्मान इज्जत मिलती है, हम प्रयास करे की हम असली बने प्रामाणिक बने । हमे नकली या दखली नहीं बनना है, दखली वो होते है जो हर कम मे दखल देते है, जैसे पिताजी की इच्छा है दान देने की लेकिन बेटा दखल दे देता है दान करने से रोक देता है, सास भले ही 10 तरह है नियम त्याग प्रत्याखन न लेवे लेकिन वो बहू को ज्यादा दखल न देवे तो ये ज्यादा अच्छी बात होगी, 60 साल के बाद तो सरकार भी सेवानिवृत कर देती है, तो हमे भी परिवार मे बेवजह दखल देना बंद कर देना चाहिए । यह सारगर्भित प्रवचन पुज्याश्री रत्नज्योति जी मसा ने नीमचौक स्थानक की महती धर्मसभा मे प्रदान किए ।
पुज्या श्री अर्पिताजी मसा ने फरमाया की दान 3 प्रकार का होता है, पहला जघन्य दान जो की हम द्वार पर आए हुए याचक को भिखारी को प्रदान करते है, दूसरा मध्यम दान जो की साधर्मी की मदद करना और तीसरा सबसे उत्तम दान होता है सुपात्र दान जो प्रभु महावीर के अनुययी संत सतियो को जो आहार पानी, वस्त्र, ओषधी का दान करते है वो सुपात्र दान कहलाता है । व्यक्ति को हमेशा इन तीनों प्रकार दे दान देने के लिए तैयार रहना चाहिए उत्साहित रहना चाहिए ।
व्यक्ति को चार बातों के बारे में चिंतन करते रहना चाहिये । प्रकृति, आसक्ति, जाग्रति और निवृत्ति । इन्सान को अपनी प्रकृति अर्थात स्वाभाव पर ध्यान देना चाहिए, व्यक्ति का स्वाभाव ऐसा होना चाहिए की लोग उससे मिलकर प्रसन्न हो, जब य्यक्ति घर पहुचे तो घरवाले उसका इंतजार करे न की उसके घर से जाने की प्रतीक्षा करे । दूसरा इन्सान को अपनी आसक्ति को निरंतर कम करते रहने का प्रयास करना चाहिए, आसक्ति नरक का द्वार है । तिसरा इन्सान को हमेशा जागृत रहने का प्रयास करना चाहिए, जागृत रहना मतलब सजग रहना पापों से बचने के लिए सजग रहना और दान पूण्य धर्म करने के लिए हमेशा जागृत रहना चाहिए । चोथा है निवृति, एक निश्चित उम्र के बाद संसार के कार्यों से निवृत्ति के लिए प्रयास करना चाहिए ।