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रतलाम । वेदों के प्रत्येक मंत्र ऋषि एवं देव स्वरूप है। गृहस्थाश्रम धर्म का वर्णन वेद के मंत्रों में किया गया है। उक्त उद्गार श्री सागरेश्वर महादेव के विशाल परिसर में चल रही संगीतमय श्रीमद् भागवत कथा में आचार्य प्रवर परम पूज्य गुरु, रामायण प्रवक्ता पंडित श्री योगेश्वर शास्त्री ने व्यक्त किए। आपने बताया कि यदि मन विशाल रखोगे तो परिवार में प्रेमभाव बना रहेगा। हमारे देश का आदर्श तो संयुक्त कुटम्ब का है। रामजी चारों भाइयों के सहित एक ही राज भवन में रहते थे। जीव प्रकृति के अधीन हैं लेकिन ईश्वर प्रकृति के अधीन नहीं है। ईश्वर आष्टधा प्रकृति को अपने वश में करते है। प्रकृति अर्थात स्वभाव को अपने अधीन करो। तुम स्वभाव के अधीन मत बनो। प्रकृति को वशीभूत करने वाला जीव सुखी हो जाता है। जप, ध्यान, सेवा, स्मरण, सत्संग, सद्कर्म, सतग्रंथों का अध्ययन किया जाए तो जीवन मंगलमय होगा। पूजन के यजमान शंकर स्वामी, मनोज माली एवं परिवार द्वारा व्यासपीठ का पूजन किया गया।
उक्त जानकारी सूरजमल टांक ने देते हुए बताया कि पंडित सुरेन्द्र दुबे की स्मृति में आयोजित संगीतमय श्री भागवत भागवत कथा में दिनेश पटेल, अशोक राठौर, हीरालाल असावरा, सत्यनारायण शर्मा, कनकमल जैन आदि ने पूजा अर्चना कर धर्मालुजनों से कथा श्रवण करने की अपील की।